सोनू सूद: सरकारी सिस्टम की नाकामी से बने नायक का भंग होता नायकत्व!

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  • लोगों की राय में सोनू सूद एक नायक है और एजेंसियों की निगाह में एक टैक्स चोर!

दृष्टिकोण ( प्रो० डॉ० सुशील उपाध्याय): एक कलाकार और एक व्यक्ति के तौर पर सोनू सूद अच्छे इंसान हैं, ऐसी राय ज्यादातर लोगों की है। कोरोना महामारी के दौरान उन्होंने आम लोगों की मदद की और इसके लिए मीडिया माध्यमों में उनकी काफी प्रशंसा भी हुई। अब उनके मामले में इनकम टैक्स से संबंधित जो चीजें सामने आ रही हैं, वे किसी अच्छी दिशा की ओर संकेत नहीं करती हैं। ताजा घटनाक्रम नायकत्व-भंग का सशक्त उदाहरण है।


अब यह खुला हुआ सच है कि उन्होंने क्राउड फंडिंग के जरिए लगभग 19 करोड़ रुपये जुटाए और इनमें से लोगों की मदद पर केवल दो करोड़ रुपए खर्च किए। जांच एजेंसी के इस दावे पर सोनू सूद की तरफ से बहुत संक्षिप्त टिप्पणियां आई हैं। सच क्या है, इसका पता फिलहाल नहीं लगाया जा सकता, लेकिन यह सवाल जरूर पैदा होता है कि 19 करोड़ रुपए जुटाकर केवल 2 करोड़ रुपए की मदद किस तरह से तार्किक और उचित है? इसका उत्तर हासिल कर पाना आसान बिल्कुल नहीं है।

सोनू सूद के साथ मीडिया, विशेष रूप से हिंदी मीडिया के व्यवहार को जोड़ कर देखिए तो पाएंगे कि हिंदी मीडिया ने कोरोना महामारी के शुरू से ही उन्हें एक नायक की तरह प्रस्तुत किया। एक ऐसा नायक जो सरकारी सिस्टम के नाकाम होने पर लोगों की उम्मीद का केंद्र बना हुआ था। वस्तुतः उनके इस नायकपन में पब्लिसिटी एजेंसियों का बड़ा हाथ है। इससे दोनों पक्षों के लिए ‘विन-विन सिचुएशन’ बनती है। यानी पब्लिसिटी एजेंसियों ने सोनू सूद के भीतर-बाहर के नायक को चमकाया और मीडिया ने इस नायक को जनता के सामने रखा। इससे मीडिया को भी आर्थिक लाभ हुआ और सोनू सूद की ब्रांड वैल्यू में एक बड़ी बढ़ोतरी हुई। यहां यह बात स्पष्ट किया जाना जरूरी है कि जब दूसरे लोग लगभग सुप्त अवस्था में हों, तब किसी सोनू सूद का अचानक उभर कर आ जाना, बहुत स्वाभाविक है।

फिलहाल, सोशल मीडिया माध्यमों पर यह चर्चा लगातार हो रही है कि सोनू सूद के खिलाफ तब कार्यवाही शुरू की गई, जब वे दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के साथ मंच शेयर करते हुए दिखे। इस तर्क के आधार पर यह कार्रवाई इसलिए स्वाभाविक है कि सोनू सूद सत्ताधारी पार्टी को परोक्ष तौर पर चुनौती देने वाले मंच का हिस्सा बनकर सामने आएंगे तो ऐसे में न केवल इनकम टैक्स बल्कि ईडी और सीबीआई जैसी एजेंसी भी सक्रिय हो सकती हैं। और जब ये एजेंसियां सक्रिय होती हैं तो फिर बहुत सारी ऐसी चीजें भी निकल कर आती हैं जो जन सामान्य की सोच और उनकी धारणा के विपरीत दिखती हैं।


इस प्रकरण में हम में से ज्यादातर लोगों को उतनी ही जानकारी है, जितनी कि मीडिया माध्यमों या जांच एजेंसियों के जरिए बाहर आई है। इन तथ्यों और जानकारी के आधार पर दो तरह की राय और धारणाएं साफ-साफ देखी जा सकती हैं।

लोगों की राय में सोनू सूद एक नायक है और एजेंसियों की निगाह में एक टैक्स चोर!

इन दोनों चीजों को सामने रखकर देखने पर एक स्वाभाविक और सहज बात जरूर मानी जा सकती है कि यदि कहीं धुंआ दिखाई दे रहा है तो वहां किसी न किसी स्तर पर आग जरूर मौजूद है।


एक अर्द्ध-प्रगतिशील समाज के तौर पर हम लोग हमेशा नायक की प्रतीक्षा में रहते हैं और जब यह नायक अंत में हमारे जैसे ही साबित होते हैं तो कहीं ना कहीं मलाल और क्षोभ का भाव जरूर पैदा होता है। आने वाले दिनों में यह भी साबित हो जाएगा की सोनू सूद का नायकत्व लगभग वैसा ही था जैसा कि महिलाओं के उत्थान में प्रियंका चोपड़ा या श्रीदेवी का। वास्तव में, मौजूदा सिस्टम में लाभ कमाते हुए ऊंचाइयों का आनंद लेना हो तो फिर सचिन तेंदुलकर और अमिताभ बच्चन (इस सूची में और भी कई नाम जोड़े जा सकते हैं) से बेहतर कोई उदाहरण नहीं हो सकता।

सत्ता किसी की भी हो, व्यवस्था कोई भी हो, ये निरपेक्ष भाव से अपने वजूद का उत्सव मनाते रहते हैं, लेकिन जब कोई सोनू सूद अति उत्साह में अरविंद केजरीवाल या ऐसे ही किसी अन्य का मंच शेयर करेगा तो जांच एजेंसियां आसानी से साबित कर देंगी कि 19 करोड़ रुपए जुटाकर केवल दो करोड़ रुपए खर्च करके आप कानून की निगाह में गुनाहगार हैं।

(लेखक शिक्षाविद एवं वरिष्ठ पत्रकार हैं। विचार निजी हैं)


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