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उत्तराखंड का ‘बीमार’ हेल्थ सिस्टम: कोरोना की तीसरी लहर में बच्चों को सबसे अधिक खतरा, राज्य में 60 फ़ीसदी बाल रोग विशेषज्ञ डॉक्टरों के पद रिक्त, 13 में से 11 जिलों में एक भी मनोचिकित्सक नहीं, मैदान से पहाड़ भगवान भरोसे स्वास्थ्य

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  • एसडीसी फाउंडेशन ने ‘स्टेट ऑफ स्पेशलिस्ट डॉक्टर्स इन उत्तराखंड 2021’ अध्ययन का दूसरा हिस्सा जारी किया
  • पहला हिस्सा 24 जुलाई 2021 को जारी किया गया था
  • उत्तराखंड में स्पेशलिस्ट बाल रोग और स्त्री रोग विशेषज्ञ 60 फीसदी कम
  • नौ जिलों में 50 प्रतिशत से कम विशेषज्ञ डॉक्टर
  • मानसिक स्वास्थ्य सेवा का स्तर बेहद चिंताजनक, 11 जिलों में एक भी स्पेशलिस्ट मनोचिकित्सक नहीं

देहरादून: उत्तराखंड के नौ जिलों में विशेषज्ञ डॉक्टरों के 50 प्रतिशत से ज्यादा पद खाली है। 13 में से 11 जिलों में एक भी मनोचिकित्सक नहीं है, जिससे हिमालयी राज्य में मानसिक स्वास्थ्य सेवा तक लोगों की पहुंच नहीं है। ऐसे समय में जबकि लगातार तीसरी लहर की आशंका जताई जा रही है तो राज्य के 4 जिलों में सार्वजनिक स्वास्थ्य विशेषज्ञ उपलब्ध ही नहीं हैं।

दून स्थित एसडीसी फाउंडेशन ने राज्य स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय की ओर से एक आरटीआई के जवाब में मिली सूचना के आधार पर यह आंकड़ा जारी किया है। विशेषज्ञ डाॅक्टरों की उपलब्धता को लेकर एसडीसी फाउंडेशन की यह दूसरी रिपोर्ट है। पहली रिपोर्ट 24 जुलाई, 2021 को जारी की गई थी।

एसडीसी फाउंडेशन की यह रिपोर्ट बताती है कि राज्य के सीमान्त चमोली में विशेषज्ञ डाॅक्टरों के 62 पद स्वीकृत हैं, लेकिन इनमें से केवल 17 पदों पर ही नियुक्तियां हुई हैं। इसी तरह पौड़ी जिले में विशेषज्ञ डाॅक्टरों के स्वीकृत 152 पदों में से मात्र 42 पदों पर नियुक्ति की गई है। जिला अल्मोड़ा में विशेषज्ञ डाॅक्टरों के स्वीकृत 127 पदों में से केवल 49 विशेषज्ञ डाॅक्टर काम कर रहे हैं। पिथौरागढ़ जिले में स्वीकृत 59 मे से केवल 22 विशेषज्ञ डाॅक्टर उपलब्ध हैं।

एसडीसी फाउंडेशन के विश्लेषण से पता चलता है कि सबसे ज्यादा जनसंख्या वाले हरिद्वार जिले में स्थिति सबसे ज्यादा चिंताजनक है। हरिद्वार में स्वीकृत 105 पदों के केवल 40 पदों पर ही विशेषज्ञ डाॅक्टर नियुक्त हैं। यानी कि हरिद्वार में 50,000 से ज्यादा लोगों पर केवल एक विशेषज्ञ डाॅक्टर उपलब्ध है।

एसडीसी फाउंडेशन के संस्थापक अनूप नौटियाल कहते हैं कि राज्य सरकार को भारत सरकार के साथ आईपीएचएस ढांचे की समीक्षा और पुनर्मूल्यांकन करना चाहिए। वे कहते हैं कि कम जनसंख्या के बावजूद नैनीताल और पौड़ी में सर्वाधिक स्वीकृत पदों पर पुनर्विचार किया जा सकता है । अनूप ने कहा कि हमें अपने मानव संसाधनों को विवेकपूर्ण तरीके से उपयोग करने और उन जगहों पर अधिक ध्यान केंद्रित करने की जरूरत है जहां स्वास्थ्य सुविधाओं पर बोझ अधिक है।

एसडीसी फाउंडेशन के रिसर्च एंड कम्युनिकेशंस हेड ऋषभ श्रीवास्तव कहते हैं कि फाउंडेशन द्वारा तैयार किए गए विश्लेषण के अनुसार, बाल विशेषज्ञों और स्त्री रोग विशेषज्ञों के मामले में राज्य की स्थिति बेहद चिंताजनक है। स्वीकृत पदों के मुकाबले केवल 40 प्रतिशत बाल रोग और महिला रोग विशेषज्ञ राज्य के अस्पतालों में काम कर रहे हैं।ऋषभ के अनुसार पर्वतीय इलाकों में महिलाओं के लिए स्वास्थ्य सेवाएं उपलब्ध होना लगातार चुनौती बनता जा रहा है। महिला डॉक्टरों की अनुपलब्धता इस मुद्दे को और बढ़ा रही है और संस्थागत प्रसव, प्रसव पूर्व देखभाल, बाल पोषण आदि मामलों में राज्य की स्थिति मे इस कारण से अपेक्षित सुधार नहीं हो पा रहा है।

एसडीसी फाउंडेशन के शोध अध्ययन के सदस्य विदुष पांडे कहते हैं कि कई विशेषज्ञों को प्रशासनिक कार्य मे लगाया गया है। राज्य सरकार को इस तरफ विशेष ध्यान देने की जरूरत है और विशेषज्ञों की सेवाओं को मरीजों के उपचार मे लगाने के अलावा और नए विशेषज्ञों क़ी नियुक्तियों पर आगे बढ़ने की ज़रूरत है ।

एसडीसी फाउंडेशन उत्तराखंड में कोविड-19 की स्थिति की बारीकी से निगरानी कर रहा है और राज्य में अन्य प्रमुख सार्वजनिक स्वास्थ्य सुधारों को लेकर लगातार रिपोर्ट तैयार कर रहा है। इस अध्ययन का अंतिम भाग आने वाले कुछ दिनों में जारी किया जाएगा।

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