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TSR का दिल्ली दौरा, प्रधानमंत्री मोदी से बिना फोटो वाली मुलाकात और चाय की प्याली में सियासी तूफान

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दृष्टिकोण (पवन लालचंद) : यूं तो सियासत में कोई लकीर अंतिम समझकर नहीं खींची जाती है। हां कई बार अघोषित लकीरें कुछ इस अंदाज में खींच दी जाती हैं कि उनका ऊपरी तौर पर नजर आना मुमकिन नहीं होता है परंतु जब तब खुद हालात बयां कर देते हैं कि आपस में विभाजन की एक बारीक रेखा दीवार की मानिंद आन खड़ी हुई है।

उत्तराखंड की राजनीति में यह हाल पिछली सरकार में चार साल पूरे होने से महज नौ दिन पहले मुख्यमंत्री की कुर्सी गंवा देने वाले त्रिवेंद्र सिंह रावत का अपने पार्टी के शीर्ष नेतृत्व के साथ हो गया है। मुद्दे पर आने के लिए इतनी लम्बी चौड़ी भूमिका उनके दिल्ली दौरे में भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा से फोटो वाली मुलाकात और फिर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से बिना फोटो वाली ‘लम्बी’ मुलाकात (शायद 45 मिनट से भी लम्बी, गोया प्रधानमंत्री आजकल फ्री हों), को लेकर बनानी पड़ी है।

भाजपा की गहरी समझ रखने वालों द्वारा कहा तो यह गया कि त्रिवेंद्र सिंह रावत को पार्टी आलाकमान की ओर से दिल्ली का बुलावा आया था क्योंकि UKSSSC पेपर लीक कांड से लेकर विधानसभा में बैकडोर भर्ती सहित तमाम मुद्दों पर उनके बयान पार्टी लाइन से इतर साबित हो रहे थे। भाजपा मुख्यालय में उनकी पार्टी अध्यक्ष जेपी नड्डा से मुलाकात को भी इसी से जोड़ कर देखा गया कि TSR ने खुद को अलग थलग कर दिए जाने का दर्द बयां किया तो नेतृत्व द्वारा उनसे बयानबाजी कर पार्टी लाइन के इतर ना जाने की हिदायत दी गई। TSR ने नड्डा से मुलाकात के बाद सोशल मीडिया पर फोटो भी जारी की।

संभव है कि नड्डा से मुलाकात में उनको अलग-थलग महसूस न करने और भविष्य में कोई जिम्मेदारी देने का आश्वासन भी मिल गया हो! लेकिन यह आश्वासन जल्दी और उत्तराखंड की राजनीति में फलीभूत हो जाए इसके आसार कम ही लग रहे हैं। इस पर संशय की वजह खुद TSR ने अपनी अगली मुलाकात के जानकारी शेयर करने के जरिए दे दी थी। दरअसल त्रिवेंद्र सिंह रावत जेपी नड्डा से मुलाकात के बाद दिल्ली दौरे में प्रधानमंत्री मोदी से भी मिलते हैं। कहने को टीम TSR ने प्रदेश में यह कहकर हल्ला काट दिया कि 45 मिनट से भी ‘लम्बी’ मुलाकात हो गई यानी अब कुछ बड़ा होकर रहेगा।

कहा गया कि TSR ने सूबे के मौजूदा हालात को लेकर अपना फीडबैक दे दिया ही और अब तो प्रेमचंद अग्रवाल का मंत्री पद समझो गया! इतना ही नहीं TSR का दिल्ली टूर न जाने किस-किस की कुर्सी को संकट में डाल देगा। मानो PM मोदी फैसले लेते वक्त इसी तरह पास बिठाकर फीडबैक लेते हैं और उनका अपना कोई जमीनी हालात की रिपोर्ट हासिल करने का तंत्र नहीं हो! मानो प्रेमचंद अग्रवाल ने विधानसभा बैकडोर भर्तियों को लेकर जो किया वह मोदी-शाह या दिल्ली से छिपा रह गया हो कि TSR रिपोर्ट देंगे और धड़ाधड़ एक्शन होगा!

कम से कम मेरे जैसे राजनीतिक रिपोर्टिंग की जरा सी समझ रखने वाले को भी कल से लगातार यही खटक रहा है कि प्रधानमंत्री मोदी से हुई इस महत्वपूर्ण और ‘लम्बी’ मुलाकात की तस्वीर पूर्व सीएम त्रिवेंद्र सिंह रावत सोशल मीडिया में साझा करने में और कितनी देर लगाएंगे। फिर लगा पीएमओ से निकलकर कर्तव्यपथ पर अपना फोटो सेशन कराने के बाद शायद मोदी से मुलाकात की तस्वीर वे ट्विटर पर शेयर करेंगे। लेकिन शाम तक कई बार TSR के ट्विटर पर होकर आया लेकिन पीएम से मुलाकात की फोटो नहीं मिल पाई। अलबत्ता प्रधानमंत्री से मुलाकात के बाद खुश त्रिवेंद्र सिंह रावत का बिन फोटो ट्वीट जरूर आ गया।

जबकि लम्बी मुलाकात के बारे में मीडिया को जानकारी देते हुए वे खुद कह चुके हैं कि उन्होंने पर्यावरण को लेकर अपनी चिंता, खासकर उत्तराखंड की वनाग्नि को लेकर अपने दर्द से अवगत कराया। संभव है त्रिवेंद्र रावत ने फॉरेस्ट फायर से उत्तराखंड के वनों को बचाने को लेकर शुरू की गई कोई अपनी चार साल की सरकार की किसी योजना को जानकारी ही साझा भी को हो। शायद यही वजह रही होगी कि प्रधानमंत्री मोदी भी त्रिवेंद्र रावत की इन बातों में इतना खो गए हों कि वहां चौबीस घंटे मौजूद रहने वाले फोटोग्राफर को बुलाकर त्रिवेंद्र रावत सोशल मीडिया पर मुलाकात की कोई तस्वीर साझा कर सके इसके लिए एक फोटो तक क्लिक करने का आदेश देना भूल गए!

वरना तो जिनसे प्रधानमंत्री मोदी तबियत से मिलते हैं उनके साथ अपनी मुलाकात की फोटो अपने ट्विटर अकाउंट के जरिए शेयर करने से वे खुद ही नहीं चूकते हैं। खैर लम्बी मुलाकात के लम्हें अपनी यादों में समेट TSR साहब देहरादून लौट आए हैं और ईटीवी भारत के संवाददाता के उत्तराखंड के भर्ती घपलों संबंधी सवाल पर खुद बताते हैं कि ये प्रधानमंत्री के स्तर का इश्यू नहीं था, ये स्टेट लेवल का इश्यू है और स्टेट लेवल पर इसे लेकर कार्रवाई हो रही है। जाहिर है TSR का ये बदला रुख दिल्ली दौरे का असर हो सकता है लेकिन आने वाले दिनों में उनके कुछ और बयानों से इस पर तस्वीर और साफ हो सकेगी।

तो क्या त्रिवेंद्र रावत के हर दिल्ली दौरे की तर्ज पर इस बार भी उनके समर्थकों द्वारा माहौल बनाने को चाय के प्याले में तूफान उठाने की भरसक कोशिश की गई ? क्या समझा जाए कि अभी मोदी शाह और भाजपा नेतृत्व बहुत सकारात्मक नहीं दिख रहा कि वह TSR को उत्तराखंड की राजनीति में कोई स्पेस आसानी से देना चाहे! यह बहुत संभव है कि त्रिवेंद्र रावत ने अपने राजनीतिक भविष्य और अपनी क्षमताओं को लेकर आस लगाई हो जिसे शीर्ष नेतृत्व ने ना भी न कहा हो। लेकिन इस पर लम्बी मुलाकात के बावजूद फोटो फ्रेम में प्रधानमंत्री मोदी का त्रिवेंद्र सिंह रावत के साथ नजर न आना कई तरह के संदेह पैदा करता है। शायद अपने इस लिखे की भूमिका में जिस बारीक लाइन का जिक्र किया गया है, बिना तस्वीर वाली लम्बी मुलाकात से वही तो नजर नहीं आ रही! शायद!

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