देहरादून: उत्तराखंड समाज कल्याण विभाग का छात्रवृति घोटाला संस्थागत भ्रष्टाचार का एक ऐसा नमूना है जिसमें सफ़ेदपोश, अफ़सरशाही और शिक्षण संस्थानों की मिलीभगत से गरीब बच्चोें के जारी हुए करोड़ों रु की बंदरबांट की गई। हाईकोर्ट के लगातार हंटर का नतीजा रहा कि जैसे तैसे एसआईटी की जांच आगे बढ़ती गई। वरना इस घोटाले के रसूखदार मास्टरमाइंड जांच ही नहीं होने देना चाह रहे थे।
उत्तराखंड से निकलकर घोटाले के तार उत्तर प्रदेश, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, राजस्थान, मध्यप्रदेश आदि राज्यों के शिक्षा माफिया और अधिकारियों-कर्मचारियों से जुड़े हैं।अमर उजाला रिपोर्ट के मुताबिक़ अब जल्द ही मिलीभगत से घोटाले को अंजाम देने वाले 25 अधिकारियों के खिलाफ एसआईटी चार्जशीट दाखिल करने जा रही है।
सवाल है कि क्या धामी सरकार इस जांच को मुक़ाम तक पहुंचाने का दम दिखाएगी? क्योंकि जीरो टॉलरेंस के टीएसआर राज में एसआईटी इंचार्ज टीसी मंजूनाथ का तबादला टिहरी एसपी बनाकर कर दिया गया था और हाईकोर्ट हंटर के बाद वापसी करानी पड़ी थी। आज भी एसआईटी जांच टॉप लेवल पर बैठे इस घोटाले के मास्टरमाइंड घेर पाएगी इसे लेकर संदेह बना हुआ है। सालों तक चले घोटाले की जांच भी सालों से हो रही है।
2018 से जांच कर रही एसआईटी अब तक 120 शिक्षण संस्थानों के खिलाफ चार्जशीट दाखिल कर चुकी है और दस्तावेज़ों को सत्यापित कर घोटाले की पटकथा लिखने वाले दो दर्जन अधिकारियों के खिलाफ चार्जशीट जल्द दाखिल करने की तैयारी है। एसआईटी जांच अंतिम दौर में हैं और अब तक 83 केस दर्ज किये जा चुके हैं।
दरअसल छात्रवृति घोटाले में शिक्षण संस्थानों ने अधिकारियों के साथ मिलकर फ़र्ज़ी तरीके से कमजोर तबके के बच्चे अपने संस्थानों में दिखाए, जो असल में कभी वहां पढ़े ही नहीं थे, और उनके नाम पर करोड़ों रुपए डकार लिए। अधिकारियों ने 2011-12 से लेकर 2016-17 के बीच मिलीभगत कर फ़र्ज़ी बच्चोें के होने की तस्दीक़ कर करोड़ों का फंड रिलीज़ किया।