देहरादून में Valley of Words 2022 का आगाज: कैसे उत्तराखंड की इकोनॉमी को फिल्म इंडस्ट्री से मिल रही रफ्तार बताया अभिनव कुमार ने, ये सत्र भी रहा खास

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Valley of Words 2022 News: वैली ऑफ वर्ड्स के इंटरनेशनल लिटरेचर एंड आर्ट फेस्टिवल के छठे संस्करण का शनिवार को देहरादून में आगाज हो गया। इस बार उत्तराखंड का सूचना और लोक संपर्क विभाग भी वैली ऑफ वर्ड्स का पार्टनर बना है और राज्य में हो रहे विकास कार्यों पर रोशनी इस अहम प्लेटफॉर्म के जरिए डाली जा रही है।
दो दिवसीय वैली ऑफ वर्ल्ड इंटरनेशनल लिटरेचर एंड आर्ट फेस्टिवल के पहले दिन विशेष प्रमुख सचिव सूचना अभिनव कुमार ने Film Industry as the Growth Driver of Uttarakhand’s Economy विषय पर आयोजित चर्चा में हिस्सा लिया और फिल्म शूटिंग से लेकर इंडस्ट्री कैसे उत्तराखंड की इकोनोमिक स्टोरी में ग्रोथ ड्राइवर की भूमिका में होगी इस पर रोशनी डाली।

राज्य सरकार द्वारा फिल्म विकास परिषद के माध्यम से किये जा रहे कार्यों की जानकारी देते हुए विशेष प्रमुख सचिव सूचना अभिनव कुमार ने कहा कि उत्तराखंड राज्य से कई लेखक, एक्टर, फिल्म प्रोड्यूसर एवं फिल्मों के क्षेत्र में कार्य करने वाले नामी चेहरे हैं। उन्होंने कहा कि उत्तराखंड दिन प्रतिदिन फिल्म इंडस्ट्री के लिए एक नए शूटिंग डेस्टिनेशन के रूप में उभर रहा है। उत्तराखण्ड का नैसर्गिक सौन्दर्य फिल्मांकन के लिए लोगों को आकर्षित कर रहा है। उन्होंने बताया कि राज्य में पिछले एक वर्ष में करीब 300 से अधिक छोटी-बड़ी फिल्मों की शूटिंग की गई है जो कि उत्तराखंड राज्य के लिए एक बड़ा सकारात्मक संकेत है।

अभिनव कुमार ने कहा कि उत्तराखंड राज्य को नए शूटिंग डेस्टिनेशन के रूप में विकसित करने के लिए मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी के नेतृत्व में सरकार फिल्म सिटी इंफ्रास्ट्रक्चर एवं नई फिल्म पॉलिसी पर कार्य कर रही है।

विशेष प्रमुख सचिव सूचना अभिनव कुमार ने कहा कि उत्तराखण्ड फिल्म विकास परिषद द्वारा प्रस्तावित फिल्म नीति-2022 के संबंध में आम जनता से सुझाव मांगे गये थे और अभी नयी नीति पर काम चल रहा है। उन्होंने फिल्म जगत से आए विभिन्न कलाकारों से नई फिल्म नीति 2022 को लेकर अपने सुझाव और सलाह देने का भी आग्रह किया। विशेष प्रमुख सचिव कुमार ने कहा कि फिल्म नीति 2022 को इस साल के आखिरी तक तैयार कर लिया जाएगा।

उन्होंने कहा हम कलाकारों, स्थानीय लोगों, एक्टर एवं सभी को सामूहिक तौर पर नई फिल्म नीति से जोड़ना चाहते हैं। उन्होंने कहा कि उत्तराखंड राज्य में बढ़ती फिल्म शूटिंग से यहां के लोगों को रोजगार मिलेगा एवं युवाओं को नए अवसर प्रदान होंगे। अभिनव कुमार ने कहा कि यह राज्य आउटडोर शूटिंग डेस्टिनेशन के तौर पर बड़ा हब बनने जा रहा है। साथ ही हम स्थानीय फिल्म कलाकारों एवं स्थानीय बोली में बनी फिल्मों को भी प्रोत्साहित कर रहे हैं जिसके लिए सूचना एवं लोक संपर्क विभाग में सब्सिडी का क्राइटेरिया भी है।

विशेष प्रमुख सचिव सूचना अभिनव कुमार ने बताया कि मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी के निर्देशों पर उत्तराखंड में फिल्म सिटी के विस्तार के लिए 100 एकड़ से अधिक भूमि के चिन्हीकरण को लेकर कार्य किया जा रहा है। साथ ही उत्तराखंड में अच्छे एवं उच्च गुणवत्ता के स्टूडियो खोले जाएंगे। उन्होंने कहा कि हम उत्तराखंड राज्य में फिल्म सिटी को हाई क्वालिटी प्रोडक्शन के तौर पर विकसित करेंगे, ताकि प्री प्रोडक्शन, प्रोडक्शन एवं पोस्ट प्रोडक्शन के कार्य एक ही जगह पर किया जा सके।

अभिनव कुमार ने कहा कि आने वाले 5 सालों के अंदर फिल्म सिटी पर निश्चित ही जमीनी कार्य दिखने लगेगा। उन्होंने कहा कि मैदानी इलाके के साथ ही पहाड़ों के दूरस्थ क्षेत्रों को भी शूटिंग डेस्टिनेशन के तौर पर जोड़ने का कार्य किया गया है। उत्तराखंड राज्य के स्थानीय फिल्मों के लिए नए ओटीटी प्लेटफॉर्म पर भी विचार किया जा रहा है। साथ ही उत्तराखंड राज्य में जल्द ही यू.के फिल्मफेयर अवार्ड देने का कार्य भी शुरू किया जाएगा। इस अवसर पर डायरेक्टर अविनाश ध्यानी, गढ़वाल पोस्ट संपादक सतीश शर्मा, एक्टर कुणाल शमशेर मल्ला, डॉ राजेंद्र डोभाल एवं अन्य लोग मौजूद रहे।

वहीं, वैली ऑफ वर्ड्स के इंटरनेशनल लिटरेचर एंड आर्ट फेस्टिवल के आंचल मल्होत्रा की किताब “यादों के बिखरे मोती : बंटवारे कहानियां” पर केंद्रित एक अन्य सत्र में उत्तराखंड के पूर्व पुलिस महानिदेशक और उपन्यासकार अनिल रतूड़ी तथा सुप्रसिद्ध अनुवादक, लेखक ब्रिगेडियर कमलनयन पंडित के साथ शिक्षाविद और वरिष्ठ पत्रकार प्रो० (डॉ) सुशील उपाध्याय ने साहित्यिक विमर्श और संवाद में साझेदारी की।

सत्र को होस्ट कर रहे डॉ उपाध्याय ने बताया कि आंचल मल्होत्रा की इस किताब को दोनों देशों के लोगों के रिश्ते के संदर्भ में “अल्टरनेटिव हिस्ट्री” भी कहा गया है। अपने तरह की इस अद्भुत किताब की मूल सामग्री सिंधी, पंजाबी, उर्दू, बांग्ला, पश्तो, सरायकी भाषा में रिकार्ड की गई है। उन्होंने कहा कि लेखिका ने भारत, पाकिस्तान, बांग्लादेश और इंग्लैंड तक से सामग्री और संदर्भों की तलाश की। इस सत्र की चर्चा में यह जानकारी भी निकल कर सामने आई कि प्राय: कहा जाता है कि अनुवाद किसी भी किताब के मर्म को पकड़ने में अक्सर चूक जाया करता है लेकिन खास बात ये कि इस किताब का अनुवाद मूल रचना से भी बढ़कर है।


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