- पूर्व सीएम त्रिवेंद्र रावत की भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा से मुलाकात
- क्या TSR को मिलेगी चुनावी राज्यों हिमाचल या गुजरात में कोई ज़िम्मेदारी?
- क्या टीएसआर को पार्टी उपाध्यक्ष बनाकर दिया जाएगा किसी राज्य का प्रभार?
- UKSSSC पेपर लीक और विधानसभा बैकडोर भर्ती में पार्टी लाइन से इतर बयानों के बाद बुलाए गए दिल्ली!
दिल्ली/देहरादून: उत्तराखंड के पूर्व मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने दिल्ली में भाजपा मुख्यालय पहुंचकर पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा से मुलाकात की है। मुलाकात को लेकर पूर्व मुख्यमंत्री ने ट्विट कर कहा है कि राष्ट्रीय अध्यक्ष के साथ मुलाकात में प्रदेश के समसामयिक विषयों पर चर्चा हुई। उन्होंने लिखा है,” जेपी नड्डा जी से नई दिल्ली में आत्मीय भेंट हुई। प्रदेश के समसामयिक विषयों पर चर्चा हुई। अपना अमूल्य समय प्रदान करने के लिए कोटिश: आभार अध्यक्ष जी! “
भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा के अलावा पार्टी कार्यालय में त्रिवेंद्र रावत प्रदेश के राज्यसभा सांसद और पार्टी के राष्ट्रीय मीडिया प्रभारी अनिल बलूनी से भी मिले। ज्ञात हो कि एक जमाने में टीएसआर और बलूनी की खूब छनती थी लेकिन टीएसआर के मुख्यमंत्री बनने के बाद रिश्तों में आपसी गर्माहट सियासी खटास में बदल गई। आज भी कई टीएसआर समर्थक उनकी मुख्यमंत्री जाने के पीछे कई कारणों में से एक वजह भाजपा के राष्ट्रीय मीडिया प्रमुख से अदावत को मानते हैं। खैर सियासत में न स्थाई दोस्ती होती है और न कभी स्थाई दुश्मनी ठहरी!
जाहिर है ऐसे में जब प्रदेश की राजनीति में उत्तराखंड अधीनस्थ सेवा चयन आयोग पेपर लीक कांड और विधानसभा में बैकडोर भर्ती कांड की गूँज सुनाई दे रही तब त्रिवेंद्र सिंह रावत को दिल्ली से बुलावा आना बेहद अहम राजनीतिक डेवलेपमेंट माना जा रहा है। भाजपा की अंदरूनी राजनीति की गहरी समझ रखने वाले जानकार मानते हैं कि जिस तरह से भर्तियों पर बवाल मचा तो त्रिवेंद्र सिंह रावत ने सरकार और पार्टी लाइन के इतर खुलकर बयानबाजी की वह पार्टी नेतृत्व को नागवार गुज़री है।
जबकि कुछ सियासी जानकार यह भी मानते हैं कि दरअसल जिस तरह पिछले साल बजट सत्र आहूत होने के दौरान अचानक बड़े आबरू होकर त्रिवेंद्र सिंह रावत को मुख्यमंत्री की कुर्सी गँवानी पड़ी, उसके बाद से वे लगातार अलग-थलग कर दिए गए। न उनको चुनाव लड़ाया गया और न ही उसके बाद राज्यसभा सीट या संगठन में कोई अहम पद देकर कोई अहम ज़िम्मेदारी सौंपी गई। जाहिर है इससे वो कहीं न कहीं आहत महसूस कर रहे हैं और भर्तियों पर बवाल के दौरान बढ़ चढ़कर बयानबाजी कर उन्होंने पार्टी नेतृत्व तक संदेश भेजने की कोशिश की है कि उनकी भी सुनी जाए।
ज़ाहिर है टीएसआर चाहेंगे कि उनका राजनीतिक पुनर्वास किया जाए और यह हरिद्वार से लोकसभा टिकट देकर 2024 में किया जा सकता है या फिर वे संगठन से लंबे समय तक जुड़े रहे है और 2014 में यूपी के सह प्रभारी से लेकर झारखंड प्रभारी भी रह चुके हैं। लिहाजा अब जब हिमाचल प्रदेश और गुजरात में विधानसभा चुनाव का बिगुल बज रहा तो उनको कोई ज़िम्मेदारी मिले।
सवाल है कि क्या भाजपा नेतृत्व पूर्व मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत को 2024 के लोकसभा चुनाव में हरिद्वार से टिकट दे सकता है ? जाहिर है लोकसभा टिकट बँटवारे पर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की सीधी नजर रहने वाली है और उनका रुख टीएसआर को लेकर कितना बदल पाया है इसका पता लगाने के लिए इंतजार करना होगा। एक गणित यह भी है कि टीएसआर को पार्टी का राष्ट्रीय उपाध्यक्ष बनाकर चुनावी राज्य हिमाचल, गुजरात या किसी अन्य राज्य में कोई ज़िम्मेदारी दी जाए ताकि वे राजनीतिक रूप से सक्रिय हो सकें और उत्तराखंड की ‘डे टू डे’ पॉलिटिक्स से उनको थोड़ा दूर किया जा सके ताकि अनावश्यक बयानबाजी पर भी ब्रेक लग जाए और युवा मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी और प्रदेश भाजपा अध्यक्ष महेन्द्र भट्ट की जुगलबंदी सरकार से संगठन के स्तर पर नजर आए।